Tirupati Balaji Story in Hindi 2024 | तिरुपति बालाजी की कहानी

Tirupati Balaji Story in Hindi
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Tirupati Balaji Story in Hindi | तिरुपति बालाजी की कहानी

Tirupati Balaji Story in Hindi: दोस्तों आज हम आपको तिरुपति बालाजी की कहानी के बारे में विस्तार से बताने वाले हैं। तिरुपति बालाजी भारत के सबसे प्रसिद्ध मंदिर में से एक है। इस मंदिर को वेंकेटेश्वर मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। जो की विष्णु भगवान का मंदिर है। यह मंदिर आंध्र प्रदेश के चित्तूर जिले में स्थित है। तिरुपति बालाजी के इतिहास में एक बहुत ही रोचक कहानी छुपी है। जिसके बारे में हमने आगे बताया है।

सतयुग की बात है नारद मुनि घूमते हुए गंगा नदी के किनारे पर पहुंचे। जहां पर कुछ ऋषि मुनि यज्ञ कर रहे थे। जब नारद मुनि ने ऋषियों से पूछा की आप जो यज्ञ कर रहे हैं। इसका फल किसे मिलेगा तो कोई भी ऋषि इसका सही उत्तर नहीं दे पाया। इस पर नारद मुनि ने ऋषियों से कहा कि आप इसका फल ब्रह्मा, विष्णु, महेश में से किसी को दीजिए क्योंकि वह जगत का भला चाहते है।

ऋषि-मुनियों को नारद की बात सही लगी। इसके बाद भृगु ऋषि ब्रह्मा, विष्णु, महेश की परीक्षा लेने के लिए उनके पास गए। ताकि उनमे से भी श्रेष्ठ को चुन सके। जब भृगु ऋषि ब्रह्मा के पास गए तो ब्रह्मा सरस्वती के साथ बातचीत में व्यस्त थे।

उन्होंने भृगु ऋषि के आगमन को अनदेखा कर दिया। इससे क्रोधित होकर भृगु ऋषि ने ब्रह्मा को श्राप दिया कि धरती लोक में कोई भी तुम्हारी पूजा नहीं करेगा। इसके बाद भृगु ऋषि कैलाश में महादेव शिव शंकर के पास गए। लेकिन शिव शंकर और पार्वती भी वार्तालाप में व्यस्त थे। जब शिव शंकर ने अचानक भृगु ऋषि को देखा तो वह गुस्सा हो गए और ऋषि का अनादर किया।

जिससे ऋषि ने शिवजी को भी श्राप दे दिया की पृथ्वी लोक में तुम्हारी केवल लिंग रूप में ही पूजा की जाएगी। इसके बाद भृगु ऋषि विष्णु से मिलने बैकुंठ गए। जहाँ विष्णु लक्ष्मी आपस में बातचीत में व्यस्त थे। भृगु ऋषि को पहले ही क्रोध आ रखा था। उन्होंने क्रोध में विष्णु की छाती पर अपने पैर से प्रहार कर दिया।

विष्णु इससे क्रोधित नहीं हुए उन्होंने भृगु ऋषि के पैर पकड़ लिए। जिससे ऋषि का क्रोध शांत हो गया। उन्होंने कहा कि तुम ही यज्ञ के फल के सही पात्र हो। तुम्हारी ही पृथ्वी लोक पर इसी रूप में पूजा होगी। इसके बाद भृगु ऋषि वहां से चले गए।

ऋषि के जाने के बाद लक्ष्मी ने भगवान विष्णु से कहा कि आपने उस ऋषि को दंडित क्यों नहीं किया। उसने आपकी छाती पर वार किया। जिसमें मैं रहती हूं। इस बात से लक्ष्मी जी विष्णु से क्रोधित हो गयी और बैकुंठ लोक से पृथ्वी लोक पर आ गई और तपस्या करने लगी।

इस बात से विष्णु भगवान भी बहुत चिंतित हुए और उन्होंने भी वैकुंठ लोक को छोड़ दिया और पृथ्वी पर आकर जंगलों में भटकने लगे। वह एक जगह पर चींटी द्वारा बनाए गए घर रूपी पहाड़ में रहने लगे। जब ब्रह्मा और शिव भगवान को इस बारे में पता लगा तो उन्होंने विष्णु भगवान की मदद करने की सोची और वह दोनों माता लक्ष्मी के पास पहुंचे।

उन्होंने माता लक्ष्मी को सारी कहानी बताई। उन्होंने लक्ष्मी को कहा की हम गाय बछड़े का रूप बना लेते है। आप हमें राजा नरेश के पास छोड़ आओ। इसके बाद ब्रह्मा ने गाय और महेश ने बछड़े का रूप बना लिया और माता लक्ष्मी ने ग्वालन का रूप बना लिया।

लक्ष्मी ग्वालन के रूप में राजा नरेश के दरबार में गाय बछड़े को लेकर पहुंची। उन्होंने राजा नरेश से कहा की यह गाय बहुत दूध देती है कृपया आप इसे रख लीजिए। राजा ने ग्वालन की बात मान ली और गाय और बछड़े को रख लिया। राजा ने ग्वालन को गाय के बदले में कुछ धन दिया।

इसके बाद जब राजा का ग्वाला गाय को चराने के लिए जंगल में जाता तो गाय के रूप में ब्रह्मा अपना सारा दूध चींटी के पहाड़ पर खाली कर देते थे। जिसमें विष्णु भगवान ने बास बना रखा था।

विष्णु भगवान को भी पता था की यह ब्रह्मा है। वह सारा दूध पी जाते थे। एक दिन ग्वाले ने गाय को सारा दूध उस पहाड़ पर खाली करते हुए देखा तो वह क्रोधित हो गया और उसने कुल्हाड़ी को गाय की तरफ फेंक कर मारा। तभी विष्णु उस चींटी के पहाड़ से बाहर निकल रहे थे।

जिससे उनको वह कुल्हाड़ी लग गयी। जिससे विष्णु भगवान बहुत क्रोधित हुए। उन्होंने वह कुल्हाड़ी उल्टी ग्वाले की तरफ चला दी जिससे ग्वाले की मौत हो गई। जब राजा नरेश वहां आए तो विष्णु भगवान ने नरेश को भी श्राप दिया। लेकिन राजा नरेश की विनती करने पर विष्णु भगवान ने कहा कि अगले जन्म में मैं तुम्हारी पुत्री से शादी करके तुम को मुक्ति प्रदान करूंगा।

कुछ समय बाद भगवान विष्णु ने श्रीनिवास के रूप में अवतार लिया। इस जन्म ने उनकी बकुल देवी थी। जो भगवान श्रीनिवास का ख्याल रखती थी। दूसरी तरफ राजा नरेश का आकाश राजन के रूप में जन्म हो चुका था। लेकिन उसकी कोई संतान नहीं थी।

एक दिन वह कहीं जा रहा था कि उन्हें सोने के संदूक में एक कन्या मिली। जिसका नाम उन्होंने पद्मावती रखा। जिसका अच्छे से पालन पोषण कर के उन्होंने बड़ा किया।

एक दिन श्रीनिवास हाथी का पीछा करते हुए एक वाटिका में पहुंचे जो कि राज वाटिका थी जिसमें राजकुमारी पद्मावती अपनी सखियों के साथ थी। जब श्रीनिवास ने उस वाटिका में राजकुमारी पद्मावती को देखा तो उसकी सुंदरता मंत्रमुग्ध हो गए।

घर आकर उन्होंने माँ बकुलदेवी से अपने विवाह का संदेश लेकर राजा आकाश राजन के पास जाने को कहा। इसके बाद वकुलदेवी श्रीनिवास का विवाह संदेश लेकर राजा आकाश राजन के पास गई।

आकाश राजन ने अपने ऋषि से इसके बारे में पूछा तो ऋषि ने राजा से कहा कि पद्मावती का यह जन्म भगवान विष्णु से विवाह करने के लिए हुआ है और श्री निवास ही भगवान विष्णु का अवतार है।

राजा ने श्रीनिवास से अपनी पुत्री के विवाह के प्रस्ताव को मंजूर कर लिया। इसके बाद श्रीनिवास को अपनी शादी की तैयारी करने के लिए धन की जरुरत महसूस हुई। उनके पास अब धन नहीं था क्योकि लक्ष्मी उनके साथ नहीं थी।

श्रीनिवास ने कुबेर से अपने विवाह के लिए ऋण लिया जिसको बाद में चुकाने के लिए कहा। यह ऋण इतना बड़ा था कि आज तक वेंकटेश्वर भगवान मंदिर में आने वाले भक्तों के द्वारा चलाए जाने वाले चढ़ावे से कुबेर को ऋण चुकाते है।

इसके बाद भगवान श्रीनिवास और पद्मावती का विवाह हो गया। जब लक्ष्मी को भगवान विष्णु के पद्मावती से विवाह के बारे में पता लगा तो वह विष्णु के पास गयी। माता लक्ष्मी को देखकर भगवान विष्णु ने एक पत्थर के रूप में अपने आप को ढाल लिया। जिसको आज वेंकेटेश्वर के भगवान के नाम से जाना जाता है। ब्रह्मा और महेश ने लक्ष्मी को सच बताया कि कलयुग में लोगों के कल्याण के लिए भगवान विष्णु ने पद्मावती से विवाह किया है।

इसके बाद पद्मावती और माता लक्ष्मी भी वेंकेटेश्वर भगवान के साथ विराजमान हो गयी। उन्होंने कलयुग तक पृथ्वी लोक पर रहकर लोगों की समस्या को दूर करने का निर्णय लिया। तब से तिरुपति बालाजी तिरुमाला में स्थित है।

Final words:

हम उम्मीद करते हैं कि आपको हमारे द्वारा ऊपर दी गई जानकारी Tirupati Balaji Story in Hindi, तिरुपति बालाजी की कहानी पसंद आई होगी। आप इस कहानी को अपने दोस्तों रिश्तेदारों के साथ शेयर कर सकते हैं। जिससे वह भी वेंकेटेश्वर भगवान के इतिहास के बारे में जान सके।

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