Jesus Christ Story in Hindi 2024 | यीशु मसीह के जन्म और जीवन की सच्ची कहानी

Jesus Christ Story in Hindi
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Jesus Christ Story in Hindi | यीशु मसीह के जन्म और जीवन की सच्ची कहानी

Jesus Christ Story in Hindi: दोस्तों आज हम आपको यीशु मसीह के birth की, life की real पूरी कहानी बताने वाले है। इस जानकारी के द्वारा आपको विश्व के सबसे बड़े धर्म ईसाई धर्म के संस्थापक यीशु मसीह, उनके जीवन और उनके उपदेश को जानने का मौका मिलेगा। हर साल 25 दिसंबर के दिन क्रिसमस का त्योहार पूरे विश्व में Jesus Christ के जन्म के उपलक्ष में मनाया जाता है। यीशु मसीह को ईश्वर का पुत्र कहा जाता है। जिन्होंने लोगों की भलाई के लिए और लोगों को पाप से मुक्ति दिलाने के लिए खुद सूली पर चढ़ गए। उनके संदेश से हमें बहुत कुछ सीखने को मिलता है।

आज से लगभग 2000 साल पहले इस्राइल के नाज़रात नगर में मेरी नाम की एक लड़की रहती थी। उसका स्वभाव बहुत अच्छा था। वह लोगों की मदद करने के लिए हमेशा तैयार रहती थी। मेरी का विवाह एक बढ़ई जिसका नाम युसूफ था। उससे तय हुआ।

कुछ समय के बाद मेरी की युसूफ से शादी होने वाली थी। एक दिन मेरी अपने घर पर ही थी कि तभी वहां एक देवदूत प्रकट हुआ। जिसको देखकर मेरी पहले घबरा गई लेकिन देवदूत के समझाने पर की उसे ईश्वर ने मेरी के लिए संदेश लेकर भेजा है तब मेरी ने हिम्मत से देवदूत की बात सुनी।

देवदूत ने मेरी से कहा कि ईश्वर तुम्हारे काम से और तुम्हारे व्यवहार से बहुत प्रसन्न है। ईश्वर ने उनके पुत्र को जन्म देने के लिए तुम को चुना है। तुम पवित्र आत्मा से गर्भवती होगी और एक पुत्र को जन्म दोगी। तुम उसका नाम यीशु रखना।

मेरी ने देवदूत की आज्ञा स्वीकार करी। इसके बाद मेरी गर्भवती होगी हो गई। जब मेरी ने यह बात युसूफ को बताई तो उसको विश्वास नहीं हुआ। लेकिन एक रात सपने में देवदूत ने यूसुफ को बताया कि मेरी पवित्र आत्मा की तरफ से गर्भवती हुई है और ईश्वर के पुत्र को जन्म देने वाली है। इसलिए तुम मेरी को स्वीकार करो।

तब यूसुफ ने मेरी को स्वीकार करके उससे विवाह कर लिया। उस समय वहाँ रोमन शासन था। रोमन साम्राज्य में जनसंख्या को गिनने का काम चल रहा था। इसके लिए सबको बेथलेहम जाकर अपना पंजीकरण कराना था। जिसके लिए सब बेथलेहम जा रहे थे।

Jesus Christ Full Real Birth Story in Hindi Written

यूसुफ भी अपनी गर्भवती पत्नी मेरी को लेकर बेथलेहम के लिए रवाना हुआ। वह अपनी गर्भवती पत्नी को गधे पर बिठाकर पैदल ही चल पड़ा। जब वह बेथलेहम पहुंचे तो उन्होंने देखा कि वहाँ की सभी धर्मशालाएं फुल हो चुकी हैं। जिसके बाद उन्हें रहने के लिए एक अस्तबल मिला। युसूफ और मेरी ने उसी अस्तबल में रहने का निर्णय लिया।

उसी रात को एक चरवाहे के समूह को आकाश में एक भविष्यवाणी सुनाई दी की आज रात 12:00 बजे ईश्वर के पुत्र का जन्म एक अस्तबल में होने वाला है। रात के 12:00 बजे मेरी ने अस्तबल में ईश्वर के पुत्र यीशु को जन्म दिया। कुछ समय के बाद चरवाहे भी एक तारे का पीछा करते हुए उस अस्तबल में पहुंच गए और सब ने यीशु के जन्म पर बधाई दी।

यीशु बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि के बालक थे। 12 वर्ष की आयु में वह यरूशलेम में चले गए। वह मंदिर में उपदेश देने वाले लोगों से सवाल जवाब करने लगे। जिसको देखकर सभी लोग हैरान हो गए। 30 वर्ष की उम्र में यीशु मसीह ने लोगों को धर्म का संदेश देना शुरू कर दिया।

वह यहूदी धर्म से अलग संदेश लोगों को दे रहे थे। वह पशुओं की बलि के खिलाफ थे। उन्होंने लोगों को बताया कि वह ईश्वर के पुत्र हैं। उनकी इस बात को जब कट्टर यहूदी धर्मगुरुओं को पता लगा तो वह यीशु मसीह का विरोध करने लग गए।

यीशु मसीह ने लोगों को चंगा करने का काम किया। एक बार एक लकवे से पीड़ित व्यक्ति को यीशु मसीह के सामने लाया गया तो Jesus Christ ने उस व्यक्ति को कहा कि ईश्वर ने तेरे सभी पाप क्षमा कर दिए हैं तू उठ और चल कर दिखा। इसके बाद चमत्कारी रूप से वह व्यक्ति ठीक हो गया और चल कर दिखाया।

इससे लोग बहुत प्रभावित हुए और यीशु का अनुसरण करने लगे। जिसके कारण यहूदी धर्म गुरुओं की आंख में यीशु मसीह चुभ रहे थे। यहूदी धर्म गुरुओं ने यीशु मसीह की शिकायत उस समय की रोमन शासक पिलातुस से कर दी। जिसने पहले यीशु मसीह को चेतावनी दी।

लेकिन उनके नहीं मानने पर यीशु मसीह को गिरफ्तार करके उन पर कोड़े बरसाए गए। उन पर थूका गया और उनके सिर पर कांटो का मुकुट पहनाया गया। यीशु मसीह को क्रूस उठाने के लिए कहा गया। जेरूसलम के पहाड़ पर यीशु को क्रूस के ऊपर चढ़ाया गया और उनके हाथ और पैर में कील गाड़ी गई।

जब तक उनकी मृत्यु नहीं हो गई तब तक उनको क्रूस से नहीं उतारा गया। Jesus Christ की मृत्यु के पश्चात एक सुरंग में उनके शव को एक ताबूत में रखकर उस सुरंग को एक बड़े पत्थर से बंद कर दिया गया। उस सुरंग की रक्षा रोमन साम्राज्य के सैनिक करते थे लेकिन यीशु मसीह अपनी मृत्यु के 3 दिन के बाद रविवार को दोबारा जिंदा हो गए और लोगों तक पहुंच गए।

वह 40 दिन तक लोगों को धर्म का संदेश देते रहे उसके बाद वह स्वर्ग चले गए। यीशु मसीह के पश्चात उनके 12 शिष्यों ने ईसाई धर्म का प्रचार पूरी दुनिया में किया।

ईसाई धर्म के अनुसार मूर्ति पूजा, हत्या आदि का करना पाप है। ईसाई धर्म में किसी भी व्यक्ति के साथ बुरा व्यवहार करना भी एक पाप है। ईसाई धर्म मानव सेवा पर जोर देता है। जिसका संदेश यीशु मसीह ने लोगों तक पहुंचाया। ईसाई धर्म की धार्मिक पुस्तक बाईबल है। जिसमे यीशु मसीह के सन्देश है।

Final words:

हम उम्मीद करते हैं कि आपको हमारे द्वारा ऊपर दी गई जानकारी Jesus Christ Story in Hindi Written पसंद आई होगी। आप इस जानकारी को अपने दोस्तों के साथ शेयर कर सकते हैं। जिससे उन्हें भी दुनिया के सबसे बड़े धर्म के संस्थापक यीशु मसीह के बारे में, उनके जन्म और जीवन से जुड़ी हुई सच्ची घटनाओं के बारे में जानने का मौका मिल सके।

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