Rahim Ke Dohe Class 7

Rahim Ke Dohe in Hindi Class 7,9,5,6 | रहीम के दोहे

Rahim Ke Dohe
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Rahim Ke Dohe | रहीम के दोहे

Rahim Ke Dohe in Hindi: दोस्तों आज हम इस लेख में अकबर के दरबार के महान कवि रहीम के दोहे, Rahim Ji Ke Dohe, Rahim Das Ke Dohe के बारे में आपको बताने वाले है। रहीम का पूरा नाम अब्दुल रहीम ख़ान-ए-ख़ानाँ था। रहीम का जन्म 17 दिसम्बर 1556 को हुआ। इनके पिता का नाम बैरम खान था। जो की अकबर के गुरु और अभिभावक थे।

जब रहीम पांच साल के थे तब इनके पिता की हत्या कर दी गयी। इसके बाद इनका पालन पोषण अकबर ने ही किया। रहीम को अपनी विद्वता और काव्य प्रतिभा के कारण अकबर के दरबार में नौ रत्न में शामिल थे। रहीम की पत्नी का नाम मह बानू बेगम था। इनकी 10 संतान हुई। रहीम की मृत्यु 1 अक्टूबर 1627 को आगरा में हुई। आप इन रहीम के दोहों का प्रयोग Class 7 के साथ Class 6, Class 8 और Class 9 के लिए भी प्रयोग कर सकते है।

रहीम ने बहुत सी अद्भुत दोहों की रचना की उनमे से कुछ इस प्रकार है।

Rahim Ke Dohe in Hindi | रहीमदास के दोहे

1.  रहिमन निज संपति बिन, कौ न बिपति सहाय।

बिनु पानी ज्यों जलज को, नहिं रवि सके बचाय॥

व्याख्या : इस दोहे में कबीर कहते है की मुश्किल समय में केवल निजी सम्पत्ति है जो काम आती है। जिस प्रकार पानी के अभाव में सूर्य भी कमल को सूखने से नहीं बचा सकता। उसी प्रकार जिस व्यक्ति के पास खुद की धन सम्पति नहीं है उसको बुरे समय में कोई नहीं बचा सकता। इसलिए मुश्किल वक्त के लिए हमें धन सम्पति बचा कर रखनी चाहिए।

2. रहिमन ओछे नरन सो, बैर भली न प्रीत |
काटे चाटे स्वान के, दोउ भाँती विपरीत।

व्याख्या : गिरे हुए लोगों से न तो दोस्ती अच्छी होती हैं, और न तो दुश्मनी। जैसे कुत्ता चाहे काटे या चाटे दोनों ही अच्छा नहीं होता।

3. वरू रहीम  कानन भल्यो वास करिय फल भोग
बंधू मध्य धनहीन ह्वै, बसिबो उचित न योग।

व्याख्या : रहीम कहते हैं कि निर्धन होकर बंधु-बांधवों के बीच रहना उचित नहीं है इससे अच्छा तो यह है कि वन मैं जाकर रहें और फलों का भोजन करें।

4. समय पाय फल होत है, समय पाय झरी जात।
सदा रहे नहिं एक सी, का रहीम पछितात।

व्याख्या :रहीम कहते हैं कि उपयुक्त समय आने पर वृक्ष में फल लगता है। झड़ने का समय आने पर वह झड़ जाता है। सदा किसी की अवस्था एक जैसी नहीं रहती, इसलिए दुःख के समय पछताना व्यर्थ है।

5. एकहि साधै सब सधैए, सब साधे सब जाय |
रहिमन मूलहि सींचबोए, फूलहि फलहि अघाय।

व्याख्या : एक को साधने से सब सधते हैं। सब को साधने से सभी के जाने की आशंका रहती है – वैसे ही जैसे किसी पौधे के जड़ मात्र को सींचने से फूल और फल सभी को पानी प्राप्त हो जाता है और उन्हें अलग अलग सींचने की जरूरत नहीं होती है।

6. रहिमन पानी राखिये, बिन पानी सब सून।

पानी गये न ऊबरे, मोती, मानुष, चून॥

व्याख्या : इस दोहे में रहीम ने पानी की महत्ता पर प्रकाश डाला है। रहीम जी कहते है की हमें पानी को बचा कर रखना चाहिए क्योकि पानी अमूल्य है। बिना पानी के कुछ नहीं है। जिस तरह यदि पानी न हो तो व्यक्ति आटे की रोटी भी नहीं बना सकता। बिना पानी अर्थात चमक के मोती की भी कोई कीमत नहीं है। उसी प्रकार व्यक्ति को भी पानी अर्थात अपने अंदर विनम्रता को हमेशा जीवित रखना चाहिए। यदि व्यक्ति में विनम्रता ही नहीं होगी तो वह व्यक्ति जीवित होते हुए भी मृत के समान है।

7. पावस देखि रहीम मन, कोइल साधे मौन।
अब दादुर वक्ता भए, हमको पूछे कौन।

व्याख्या : बारिश के मौसम को देखकर कोयल और रहीम के मन ने मौन साध लिया हैं। अब तो मेंढक ही बोलने वाले हैं तो इनकी सुरीली आवाज को कोई नहीं पूछता, इसका अर्थ यह हैं की कुछ अवसर ऐसे आते हैं जब गुणवान को चुप रहना पड़ता हैं। कोई उनका आदर नहीं करता और गुणहीन वाचाल व्यक्तियों का ही बोलबाला हो जाता हैं।

8. मथत-मथत माखन रहे, दही मही बिलगाय।
‘रहिमन’ सोई मीत है, भीर परे ठहराय।

व्याख्या : सच्चा मित्र वही है, जो विपदा में साथ देता है। वह किस काम का मित्र, जो विपत्ति के समय अलग हो जाता है? मक्खन मथते-मथते रह जाता है, किन्तु मट्ठा दही का साथ छोड़ देता है।

9. रहिमन धागा प्रेम का, मत तोरो चटकाय.
टूटे पे फिर ना जुरे, जुरे गाँठ परी जाय।

व्याख्या: रहीम कहते हैं कि प्रेम का नाता नाज़ुक होता है. इसे झटका देकर तोड़ना उचित नहीं होता। यदि यह प्रेम का धागा एक बार टूट जाता है तो फिर इसे मिलाना कठिन होता है और यदि मिल भी जाए तो टूटे हुए धागों के बीच में गाँठ पड़ जाती है।

10.  धनि रहीम जल पंक को लघु जिय पिअत अघाय ।

उदधि बड़ाई कौन हे, जगत पिआसो जाय॥

व्याख्या : इस दोहे में रहीम कहते है की थोड़ा सा कीचड़ का जल भी बहुत से छोटे जीव की प्यास बुझाने के काम आता है लेकिन समुन्दर में इतना विशाल पानी होने के बावजूद खारा होने के कारण किसी की प्यास नहीं बुझाता। उसी प्रकार बड़ा बनने से अच्छा है छोटा बनना जो किसी के काम आ सके। कवि इसमें हमें भी किसी व्यक्ति के काम में आने और सहायता करने की सलाह देते है।

Rahim Ji Ke Dohe

11. छिमा बड़न को चाहिये, छोटन को उतपात |
कह रहीम हरी का घट्यौ, जो भृगु मारी लात।

व्याख्या :उम्र से बड़े लोगों को क्षमा शोभा देती हैं, और छोटों को बदमाशी। मतलब छोटे बदमाशी करे तो कोई बात नहीं बड़ो ने छोटों को इस बात पर क्षमा कर देना चाहिए। अगर छोटे बदमाशी करते हैं तो उनकी मस्ती भी छोटी ही होती हैं। जैसे अगर छोटा सा कीड़ा लात भी मारे तो उससे कोई नुकसान नहीं होता।

12. रहिमन विपदा हू भली, जो थोरे दिन होय।
हित अनहित या जगत में, जान परत सब कोय।

व्याख्या : रहीम कहते हैं कि यदि विपत्ति कुछ समय की हो तो वह भी ठीक ही है, क्योंकि विपत्ति में ही सबके विषय में जाना जा सकता है कि संसार में कौन हमारा हितैषी है और कौन नहीं।

13. रूठे सुजन मनाइए, जो रूठे सौ बार,
रहिमन फिरि फिरि पोइए, टूटे मुक्ता हार।

व्याख्या : यदि आपका प्रिय सौ बार भी रूठे, तो भी रूठे हुए प्रिय को मनाना चाहिए,क्योंकि यदि मोतियों की माला टूट जाए तो उन मोतियों को बार बार धागे में पिरो लेना चाहिए।

14. खैर, खून, खाँसी, खुसी, बैर, प्रीति, मदपान.
रहिमन दाबे न दबै, जानत सकल जहान।

व्याख्या : सारा संसार जानता हैं की खैरियत, खून, खाँसी, ख़ुशी, दुश्मनी, प्रेम और शराब का नशा छुपाने से नहीं छुपता हैं।

15. एकै साधे सब सधै, सब साधे सब जाय ।

रहिमन मूलहिं सींचिबो, फूलै फलै अघाय॥

व्याख्या: इस दोहे में रहीम जी कहते है की हमें एक समय में एक ही कार्य करना चाहिए। जिससे उस काम को हम सही ढंग से कर पाएंगे और उस काम में सफलता मिलेगी। यदि हम बहुत से काम एक साथ करेंगे तो हमारा कोई भी काम पूरा नहीं हो पाएगा। जिस प्रकार केवल पौधे की जड़ में पानी देने से यह पुरे पौधे फल और फूल तक पानी पहुँचाता है।

16. वे रहीम नर धन्य हैं, पर उपकारी अंग।
बांटन वारे को लगे, ज्यों मेंहदी को रंग।

व्याख्या: रहीम कहते हैं कि वे लोग धन्य हैं जिनका शरीर सदा सबका उपकार करता है। जिस प्रकार मेंहदी बांटने वाले के अंग पर भी मेंहदी का रंग लग जाता है, उसी प्रकार परोपकारी का शरीर भी सुशोभित रहता है।

17. जो बड़ेन को लघु कहें, नहीं रहीम घटी जाहिं।
गिरधर मुरलीधर कहें, कछु दुःख मानत नाहिं।

व्याख्या: रहीम अपने दोहें में कहते हैं कि बड़े को छोटा कहने से बड़े का बड़प्पन नहीं घटता, क्योंकि गिरिधर (कृष्ण) को मुरलीधर कहने से उनकी महिमा में कमी नहीं होती।  

18. दुःख में सुमिरन सब करे, सुख में करे न कोय |
जो सुख में सुमिरन करे, तो दुःख काहे होय।

व्याख्या: दुःख में सभी लोग भगवान को याद करते हैं. सुख में कोई नहीं करता, अगर सुख में भी याद करते तो दुःख होता ही नही।

19. रहिमन अंसुवा नयन ढरि, जिय दुःख प्रगट करेइ,

जाहि निकारौ गेह ते, कस न भेद कहि देइ.

व्याख्या : इस दोहे में रहीम जी कहते है की जिस प्रकार आँखों से बहने वाले आँसू मन का दुःख व्यक्त कर देते है। उसी प्रकार घर से निकाला गया व्यक्ति भी अपने घर का भेद दूसरों को व्यक्त कर देता है।

20. मन मोटी अरु दूध रस, इनकी सहज सुभाय |
फट जाये तो न मिले, कोटिन करो उपाय।

व्याख्या : मन, मोती, फूल, दूध और रस जब तक सहज और सामान्य रहते हैं तो अच्छे लगते हैं लेकिन अगर एक बार वो फट जाएं तो कितने भी उपाय कर लो वो फिर से सहज और सामान्य रूप में नहीं आते।

Rahim Ke Dohe Class 7

21. ओछे को सतसंग रहिमन तजहु अंगार ज्यों।
तातो जारै अंग सीरै पै कारौ लगै।

व्याख्या : ओछे मनुष्य का साथ छोड़ देना चाहिए। हर अवस्था में उससे हानि होती है – जैसे अंगार जब तक गर्म रहता है तब तक शरीर को जलाता है और जब ठंडा कोयला हो जाता है तब भी शरीर को काला ही करता है।

 22. बानी ऐसी बोलिये, मन का आपा खोय |
औरन को सीतल करै, आपहु सीतल होय।

व्याख्या : अपने अंदर के अहंकार को निकालकर ऐसी बात करनी चाहिए जिसे सुनकर दुसरों को और खुद को ख़ुशी हो।

23. रहिमन चुप हो बैठिये, देखि दिनन के फेर |
जब नाइके दिन आइहैं, बनत न लगिहैं देर।

व्याख्या : इस दोहे में रहीम का अर्थ है की किसी भी मनुष्य को ख़राब समय आने पर चिंता नहीं करनी चाहिये क्योंकि अच्छा समय आने में देर नहीं लगती और जब अच्छा समय आता हैं तो सबी काम अपने आप होने लगते हैं।

24. बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर

 पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर। ।

व्याख्या : इस दोहे में रहीम जी कहते है की ऐसे बड़ा होने का भी कोई अर्थ नहीं है जो दूसरे के काम न आ सके। जिस प्रकार खजूर का पेड़ बहुत बड़ा और ऊंचा होता है। लेकिन वह किसी भी गुजरने वाले राहगीर को न तो छाया देने के काम आता है और न की कोई उसके फल का आनंद ले सकता क्योंकि उसके फल भी बहुत दूर लगते है। इससे अच्छा छोटा होने में और दूसरे के काम आने में है।

25. वृक्ष कबहूँ नहीं फल भखैं, नदी न संचै नीर
परमारथ के कारने, साधुन धरा सरीर।

व्याख्या : वृक्ष कभी अपने फल नहीं खाते, नदी जल को कभी अपने लिए संचित नहीं करती, उसी प्रकार सज्जन परोपकार के लिए देह धारण करते हैं।

26. जो रहीम उत्तम प्रकृति, का करी सकत कुसंग।
चन्दन विष व्यापे नहीं, लिपटे रहत भुजंग।

व्याख्या : रहीम कहते हैं कि जो अच्छे स्वभाव के मनुष्य होते हैं,उनको बुरी संगति भी बिगाड़ नहीं पाती. जहरीले सांप चन्दन के वृक्ष से लिपटे रहने पर भी उस पर कोई जहरीला प्रभाव नहीं डाल पाते।

27. रहिमन देखि बड़ेन को, लघु न दीजिए डारि.
जहां काम आवे सुई, कहा करे तरवारि।

व्याख्या : बड़ों को देखकर छोटों को भगा नहीं देना चाहिए। क्योंकि जहां छोटे का काम होता है वहां बड़ा कुछ नहीं कर सकता। जैसे कि सुई के काम को तलवार नहीं कर सकती। 

28. मांगे मुकरि न को गयो केहि न त्यागियो साथ

मांगत आगे सुख लहयो ते रहीम रघुनाथ। ।

व्याख्या : इस दोहे में रहीम जी कहते है की आजकल के संसार में कोई भी व्यक्ति दूसरे से कुछ मांग ले तो दूसरा व्यक्ति मुकर जाता है। कोई भी दूसरे की सहायता करने में प्रसन्न नहीं होता। ऐसे में केवल भगवान राम ही है जो मांगने वाले व्यक्ति से भी खुश होते है और उसकी मदद करते है।

29. रहिमन वे नर मर गये, जे कछु मांगन जाहि |
 उतने पाहिले वे मुये, जिन मुख निकसत नाहि।

व्याख्या : जो इन्सान किसी से कुछ मांगने के लिये जाता हैं वो तो मरे हैं ही परन्तु उससे पहले ही वे लोग मर जाते हैं जिनके मुह से कुछ भी नहीं निकलता हैं।

30. खीरा सिर ते काटि के, मलियत लौंन लगाय।
रहिमन करुए मुखन को, चाहिए यही सजाय।

व्याख्या : खीरे का कडुवापन दूर करने के लिए उसके ऊपरी सिरे को काटने के बाद नमक लगा कर घिसा जाता है। रहीम कहते हैं कि कड़ुवे मुंह वाले के लिए – कटु वचन बोलने वाले के लिए यही सजा ठीक है।

Rahim Ke Dohe Class 9

31. लोहे की न लोहार की, रहिमन कही विचार जा
हनि मारे सीस पै, ताही की तलवार।

व्याख्या : रहीम विचार करके कहते हैं कि तलवार न तो लोहे की कही जाएगी न लोहार की, तलवार उस वीर की कही जाएगी जो वीरता से शत्रु के सर पर मार कर उसके प्राणों का अंत कर देता है।  

32. रहिमन विपदा ही भली, जो थोरे दिन होय |
हित अनहित या जगत में, जानि परत सब कोय।

व्याख्या : संकट आना जरुरी होता हैं क्योकी इसी दौरान ये पता चलता है की संसार में कौन हमारा हित और बुरा सोचता हैं।

33. “रहिमन’ वहां न जाइये, जहां कपट को हेत | हम तो ढारत ढेकुली, सींचत अपनो खेत |”

व्याख्या: इस दोहे में रहीम जी समझाते है की हमें ऐसी जगह बिल्कुल भी नहीं जाना चाहिए जहाँ पर छल कपट होता हो या कपटी लोग रहते हो। ऐसे लोग उसी प्रकार दूसरे की मेहनत से फायदा उठाते है जिस प्रकार हमारे द्वारा मेहनत से कुँए से खींचे गए पानी से कोई दूसरा अपना खेत सींच ले।

34. रहिमन अंसुवा नयन ढरि, जिय दुःख प्रगट करेइ,
जाहि निकारौ गेह ते, कस न भेद कहि देइ।

व्याख्या: रहीम कहते हैं की आंसू नयनों से बहकर मन का दुःख प्रकट कर देते हैं। सत्य ही है कि जिसे घर से निकाला जाएगा वह घर का भेद दूसरों से कह ही देगा।

35. जे गरिब पर हित करैं, हे रहीम बड |
कहा सुदामा बापुरो, कृष्ण मिताई जोग।

व्याख्या: जो लोग गरिब का हित करते हैं वो बड़े लोग होते हैं। जैसे सुदामा कहते हैं कृष्ण की दोस्ती भी एक साधना हैं।

36. तासों ही कछु पाइए, कीजे जाकी आस
रीते सरवर पर गए, कैसे बुझे पियास।

व्याख्या: जिससे कुछ पा सकें, उससे ही किसी वस्तु की आशा करना उचित है, क्योंकि पानी से रिक्त तालाब से प्यास बुझाने की आशा करना व्यर्थ है।

37. “रहीम विद्या बुद्धि नहिं , नहीं धरम जस दान।

भू पर जनम वृथा धरै , पसु बिन पूंछ – विषान।।”

व्याख्या : इस दोहे में रहीम जी कहते है की जिस व्यक्ति के पास विद्या नहीं है,  जिस व्यक्ति के पास बुद्धि नहीं है और जो व्यक्ति धर्म का ज्ञान भी नहीं रखता वह व्यक्ति उसी पशु के समान है जिसके पास पुंछ नहीं है अर्थात वह व्यक्ति इस संसार में  बोझ के समान है।

38. जो रहीम गति दीप की, कुल कपूत गति सोय,
बारे उजियारो लगे, बढे अँधेरो होय।

व्याख्या : दिये के चरित्र जैसा ही कुपुत्र का भी चरित्र होता हैं. दोनों ही पहले तो उजाला करते हैं पर बढ़ने के साथ अंधेरा होता जाता हैं।

39. रहिमन रीति सराहिए, जो घट गुन सम होय
भीति आप पै डारि के, सबै पियावै तोय।

व्याख्या : रहीम कहते हैं कि उस व्यवहार की सराहणा की जानी चाहिए जो घड़े और रस्सी के व्यवहार के समान हो घडा और रस्सी स्वयं जोखिम उठा कर दूसरों को जल पिलाते हैं जब घडा कुँए में जाता है तो रस्सी के टूटने और घड़े के टूटने का खतरा तो रहता ही है।  

40. रहिमन नीर पखान, बूड़े पै सीझै नहीं
तैसे मूरख ज्ञान, बूझै पै सूझै नहीं।

व्याख्या : जिस प्रकार जल में पड़ा होने पर भी पत्थर नरम नहीं होता उसी प्रकार मूर्ख व्यक्ति की अवस्था होती है ज्ञान दिए जाने पर भी उसकी समझ में कुछ नहीं आता।

Rahim Ke Dohe in Hindi Class 5

41. बड़े काम ओछो करै, तो न बड़ाई होय।
ज्यों रहीम हनुमंत को, गिरिधर कहे न कोय।

व्याख्या : रहीम कहते हैं कि जब ओछे ध्येय के लिए लोग बड़े काम करते हैं तो उनकी बड़ाई नहीं होती है। जब हनुमान जी ने धोलागिरी को उठाया था तो उनका नाम ‘गिरिधर’ नहीं पड़ा क्योंकि उन्होंने पर्वत राज को छति पहुंचाई थी, पर जब श्री कृष्ण ने पर्वत उठाया तो उनका नाम ‘गिरिधर’ पड़ा क्योंकि उन्होंने सर्व जन की रक्षा हेतु पर्वत को उठाया था।

42. बिगरी बात बनै नहीं, लाख करौ किन कोय।

रहिमन फाटे दूध को, मथे न माखन होय॥

व्याख्या : इस दोहे में रहीम जी समझाते है की व्यक्ति को बहुत सोच समझ कर बात करनी चाहिए। क्योंकि एक बार यदि बात बिगड़ जाये तो उसको ठीक करना बहुत मुश्किल होता है। जिस प्रकार यदि एक बार दूध फट जाये तो हमारी कितनी ही कोशिश करने के बावजूद उसको मथ कर उसमे से मक्ख़न नहीं निकाला जा सकता।

43. जैसी परे सो सहि रहे, कहि रहीम यह देह,
धरती ही पर परत है, सीत घाम औ मेह।

व्याख्या: रहीम कहते हैं कि जैसी इस देह पर पड़ती है – सहन करनी चाहिए, क्योंकि इस धरती पर ही सर्दी, गर्मी और वर्षा पड़ती है. अर्थात जैसे धरती शीत, धूप और वर्षा सहन करती है, उसी प्रकार शरीर को सुख-दुःख सहन करना चाहिए।

44. जे सुलगे ते बुझि गये बुझे तो सुलगे नाहि
रहिमन दाहे प्रेम के बुझि बुझि के सुलगाहि।

व्याख्या: आग सुलग कर बुझ जाती है और बुझने पर फिर सुलगती नहीं है । प्रेम की अग्नि बुझ जाने के बाद पुनः सुलग जाती है। भक्त इसी आग में सुलगते हैं ।

45. साधु सराहै साधुता, जाती जोखिता जान
रहिमन सांचे सूर को बैरी कराइ बखान।

व्याख्या: रहीम  कहते हैं कि इस बात को जान लो कि साधु सज्जन की प्रशंसा करता है यति योगी और योग की प्रशंसा करता है पर सच्चे वीर के शौर्य की प्रशंसा उसके शत्रु भी करते हैं।

Rahim Ke Dohe Class 6

46. चाह गई चिंता मिटी, मनुआ बेपरवाह।

जिनको कछु नहि चाहिये, वे साहन के साह॥

व्याख्या : इस दोहे में रहीम जी कहते है की इच्छा ही सब दुखों का कारण है। जिस व्यक्ति के मन में कोई भी इच्छा या चिंता नहीं है वह व्यक्ति बहुत सुखी है और वह व्यक्ति राजाओं के राजा के समान है।

47. धनि रहीम गति मीन की जल बिछुरत जिय जाय
जियत कंज तजि अनत वसि कहा भौरे को भाय।

व्याख्या : इसमें बताया गया है की मछली का प्रेम धन्य है जो जल से बिछड़ते हीं मर जाती है। भौरा का प्रेम छलावा है जो एक फूल का रस ले कर तुरंत दूसरे फूल पर जा बसता है। जो केवल अपने स्वार्थ के लिये प्रेम करता है वह स्वार्थी है।

48. संपत्ति भरम गंवाई के हाथ रहत कछु नाहिं
ज्यों रहीम ससि रहत है दिवस अकासहि माहिं।

व्याख्या : जिस प्रकार दिन में चन्द्रमा आभाहीन हो जाता है उसी प्रकार जो व्यक्ति किसी व्यसन में फंस कर अपना धन गँवा देता है वह निष्प्रभ हो जाता है।

49. राम न जाते हरिन संग से न रावण साथ
जो रहीम भावी कतहूँ होत आपने हाथ।

व्याख्या :रहीम कहते हैं कि यदि होनहार अपने ही हाथ में होती, यदि जो होना है उस पर हमारा बस होता तो ऐसा क्यों होता कि राम हिरन के पीछे गए और सीता का हरण हुआ। क्योंकि होनी को होना था – उस पर हमारा बस न था न होगा, इसलिए तो राम स्वर्ण मृग के पीछे गए और सीता को रावण हर कर लंका ले गया।

50. “निज कर क्रिया रहीम कहि, सुधि भावी के हाथ।

पांसे अपने हाथ में, दांव न अपने हाथ।।”

व्याख्या : इस दोहे में रहीम जी कहते है की व्यक्ति के हाथ में केवल कर्म करना है उसका फल देना ईश्वर के हाथ में है। जिस प्रकार हमारे हाथ में जब पांसे होते है हम केवल उसको फेंक सकते है लेकिन उस पांसे से क्या निर्णय आएगा उसको हम निर्धारित नहीं कर सकते।

51. दोनों रहिमन एक से, जों लों बोलत नाहिं।
जान परत हैं काक पिक, रितु बसंत के माहिं।

व्याख्या : कौआ और कोयल रंग में एक समान होते हैं। जब तक ये बोलते नहीं तब तक इनकी पहचान नहीं हो पाती। लेकिन जब वसंत ऋतु आती है तो कोयल की मधुर आवाज़ से दोनों का अंतर स्पष्ट हो जाता है।

52. तरुवर फल नहिं खात है, सरवर पियहि न पान।
कहि रहीम पर काज हित, संपति सँचहि सुजान।

व्याख्या : रहीम कहते हैं कि वृक्ष अपने फल स्वयं नहीं खाते हैं और सरोवर भी अपना पानी स्वयं नहीं पीता है। इसी तरह अच्छे और सज्जन व्यक्ति वो हैं जो दूसरों के कार्य के लिए संपत्ति को संचित करते हैं।

53. माह मास लहि टेसुआ मीन परे थल और
त्यों रहीम जग जानिए, छुटे आपुने ठौर।

व्याख्या : माघ मास आने पर  टेसू का वृक्ष और पानी से बाहर पृथ्वी पर आ पड़ी मछली की दशा बदल जाती है। इसी प्रकार संसार में अपने स्थान से छूट जाने पर संसार की अन्य वस्तुओं की दशा भी बदल जाती है. मछली जल से बाहर आकर मर जाती है वैसे ही संसार की अन्य वस्तुओं की भी हालत होती है। 

Rahim Ke Dohe

FAQs on Rahim Ke Dohe

Who wrote the poem Rahim Ke Dohe?

The poet Rahim, also known as Abdul Rahim Khan-I-Khana, wrote the poem Rahim Ke Dohe. It is a collection of couplets that offer moral and spiritual insights on various aspects of life.

What is the meaning of Rahim Das Dohe?

Rahim Das Dohe are a collection of couplets written by the poet Rahim, which offer moral and spiritual insights on various aspects of life. The dohe are known for their simplicity, wit, and practical wisdom.

Who was Rahim Das Ji?

Rahim Das, also known as Abdul Rahim Khan-I-Khana, was a 16th-century Indian poet, scholar, and courtier in the Mughal empire. He is known for his contributions to the development of Hindavi literature.

When did Rahim born?

Abdul Rahim Khan-I-Khana, also known as Rahim, was a 16th-century Indian poet and courtier in the Mughal empire. He was born on December 17, 1556.

Final Words on Rahim Ke Dohe

दोस्तों हम उम्मीद करते है की हमारे द्वारा ऊपर बताये गए rahim das ji ke dohe, Rahim Ke Dohe in Hindi class 7, 9, 5, 6 आपको पसंद आये होंगे। आप इन दोहों को अपने class के दूसरे बच्चों के साथ share कर सकते है। जिससे उनकी भी इससे मदद होगी। आप यदि इन दोहों के बारे में अपने सुझाव हमें देना चाहते है तो कमेंट कर सकते है। 

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