33 Kabir Das Quotes in Hindi | कबीर दास के दोहे और अमृत वचन

Kabir Das Quotes in Hindi

Kabir Das Quotes in Hindi

Kabir Das Quotes in Hindi: कबीर दास भारतीय हिंदी साहित्य इतिहास के एक बहुत ही प्रसिद्ध कवि थे। जिन्होंने अपनी रचनाओं के द्वारा भारतीय समाज में फैली कुरीतियों को दर्शाया और दूर करने का प्रयास किया। वह समाज में फैले अंधविश्वास का पुरजोर विरोध करते थे। कबीरदास के द्वारा बहुत से ऐसे कोट्स और अनमोल वचन दिए गए हैं। जो बहुत कुछ सीखने का मौका देते हैं। जिसका वर्णन हमने आगे दिया है।

ऐसी वाणी बोलिए, मन का आपा खोय,
औरन को शीतल करे, आपहु शीतल होय।

अर्थ –कबीरदास जी कहते हैं कि ऐसी वाणी में बात कीजिए, जिससे सब का मन भाव विभोर हो जाए। आपकी मधुर वाणी सुनकर आप खुद भी शीतल हो और जो सुने वो भी प्रसन्न हो जाए।

 बुरा जो देखन में चला, बुरा न मिलिया कोय,
जो दिल खोजा आपना, तो मुझसे बुरा न कोय।

अर्थ – कबीरदास जी कहते हैं कि जब मैं इस संसार में बुराई खोजने निकला तो मुझे कोई बुरा नहीं मिला परन्तु जब मैंने अपने मन में झांक कर देखा तो पाया कि इस संसार में मुझ से बुरा कोई नहीं है।

कस्तूरी कुंडल बसे, मृग ढूंढत बन माहि,
ज्यो घट घट राम है, दुनिया देखे नाही।

अर्थ – कबीरदास जी कहते हैं कि एक हिरण खुद में सुगंधित होता है, और इसे खोजने के लिए पुरे वन में चलता है। इसी प्रकार राम हर जगह है लेकिन दुनिया नहीं देखती है। उसे अपने अंतर्मन में ईश्वर को खोजना चाहिए और जब वह एक बार भीतर के ईश्वर को पा लेगा तो उसका जीवन आनंद से भर उठेगा।

संसारी से प्रीतड़ी, सरै न एकी काम,
दुविधा में दोनों गए, माया मिली न राम।

अर्थ – कबीरदास जी खाते हैं कि संसारी लोगों से प्रेम और मेल-जोल बढ़ाने से एक भी काम अच्छा नहीं होता, बल्कि दुविधा या भ्रम की स्थिति बन जाती है, जिसमें न तो भौतिक संपत्ति हासिल होती है, न अध्यात्मिक। दोनों ही खाली रह जाते हैं।

Kabir Das Quotes in Hindi
दीपक सुंदर देख करि, जरि जरि मरे पतंग,
बढ़ी लहर जो विषय की, जरत न मोरें अंग।

अर्थ – जिस तरह दीपक की सुनहरी और लहराती लौ की ओर आकर्षित होकर कीट-पतंगे उसमें जल मरते हैं उसी प्रकार जो कामी लोग होते है वो विषय-वासना की तेज लहर में बहकर ये तक भूल जाते हैं कि वे डूब मरेंगे।

यह बिरियाँ तो फिरि नहीं, मन में देखू विचार,
आया लाभहि कारनै, जनम हुआ मत हार।

अर्थ – कबीरदास जी कहते हैं कि हे दास! सुन मनुष्य जीवन बार-बार नहीं मिलता, इसलिए सोच-विचार कर ले कि तू लाभ के लिए अथार्त मुक्ति के आया है। इस अनमोल जीवन को तू सांसारिक जुए में मत हार।

बार-बार तोसों कहा, रे मनवा नीच,
बंजारे का बैल ज्यौं, पैडा माही मीच।

अर्थ – कबीरदास जी कहते हैं कि हे नीच मनुष्य! सुन, तुझसे मैं बारम्बार कहता रहा हूँ। जैसे एक व्यापारी का बैल बिच मार्ग में प्राण गवा देता है वैसे तू भी अचानक एक दिन मर जाएगा।

मन मक्का दिल द्वारिका, काया कशी जान,
दश द्वारे का देहरा, तामें ज्योति पिछान।

अर्थ – कबीरदास जी कहते हैं कि पवित्र मन ही मक्का और दिल ही द्वारिका है और काया को ही काशी जानो। दस द्वारों के शरीर-मंदिर में ज्ञान प्रकाशमय स्व-स्वरूप चेतन को ही सत्य देवता समझो।

कबीर सो धन संचे, जो आगे को होय,
सीस चढ़ाए पोटली, ले जात न देख्यो कोय।

अर्थ – कबीरदास जी कहते हैं कि उस धन को इकट्ठा करो जो भविष्य में काम आए। सर पर धन की गठरी बांध कर ले जाते तो किसी को नहीं देखा।

सुख के संगी स्वारथी, दुःख में रहते दूर,
कहैं कबीर परमारथी, दुःख सुख सदा हजूर।

अर्थ – कबीरदास जी कहते हैं कि स्वार्थी लोग मात्र सुख के साथी होते हैं। जब दुःख आता है तो भाग खड़े होने में क्षणिक विलंब नहीं करते हैं और जो सच्चे परमार्थी होते हैं वे दुःख हो या सुख सदा साथ होते हैं।

चाह मिटी, चिंता मिटी, मनवा बेपरवाह,
जिसको कुछ नहीं चाहिए वह शहनशाह।

अर्थ – कबीरदास जी कहते हैं कि इस जीवन में जिस किसी भी व्यक्ति के मन में लोभ नहीं, मह माया नहीं, जिसको कुछ भी खोने का डर नहीं, जिसका मन जीवन के भोग विलास से बेपरवाह हो चुका है वही सही मायने में इस संसार का राजा महाराजा है।

कबीर संगत साधू की, निज प्रति कीजै जाए,
दुरमति दूर बहावासी, देशी सुमति बताय।

अर्थ – कबीरदास जी कहते हैं कि सकारात्मक विचारों के पास रहने से किस प्रकार जीवन में सकारात्मक सोच और विचार हम ला सकते हैं उसको समझाया है। प्रतिदिन जाकर संतो विद्वानों की संगत करो, इससे तुम्हारी दुर्बुद्धि, और नकारात्मक सोच दूर हो जाएगी और संतों से अच्छे विचार भी सीखने जानने को मिलेगा।

जो तोको कांटा बुवै ताहि बोव तू फल,
तोहि फूल को फूल है वाको है तिरसूल।

अर्थ – कबीरदास जी कहते हैं कि जो तुम्हारे लिए परेशानियाँ कड़ी करता रहता हो, तुम उसके लिए भी भला ही करो। तुम्हारी की गई अच्छाई तुम्हें ही लाभ पहुंचाएगी, और उसकी बुरी आदत उसे ही नुकसान पहुंचाएगी।

Kabir Das Ke Amrit Vachan | कबीर दास के अमृत वचन

न तो ज्यादा बोलना अच्छा है और न ज्यादा चुप होना अच्छा है।
 जो कोशिश करते है वो कुछ-न-कुछ जरुर पा लेते है पर जो कोशिश नहीं करता उसे कुछ नहीं मिलता।
न बुरा कहो न बुरा सुनो, न बुरा सोचो न बुरा करो, न किसी की बुराई सहन करो, न किसी की बुराई सहन करो और न करने दो।
Kabir Das quotes in Hindi
जिस तरह चिड़िया की चोंच भर पानी ले जाने से नदी के जल में कोई भी कमी नहीं आती, उसी तरह जरुरतमंद को दान देने से किसी के धन में कोई कमी नहीं आती।
दोस पराए देखि करि, चला हसंत हसंत,
अपने याद न आवई, जिनका आदि न अंत।

अर्थ – कबीरदास जी कहते हैं कि यह मनुष्य का स्वभव है कि जब वह दूसरों के दोष देखकर हंसता है, तब उसे अपने दोष याद नहीं आते जिनका न आदि है न अंत।

पुरुषार्थ से खुद चीजों को प्राप्त करो, उसे किसी से मांगो मत।
या दुनिया दो रोज की, मत कर यासो हेत,
गुरु चरनन चित लाइए, जो पूरण सुख हेत।

अर्थ – कबीरदास जी कहते हैं कि इस संसार का झमेला दो दिन का है अतः इससे मोह संबंध न जोड़ो। सदगुरु के चरणों में मन लगाओ, जो पूर्ण सुखज देने वाले हैं।

कबीर सुता क्या करे, जागी न जपे मुरारी,
एक दिन तू भी सोवेहा, लंबे पांव पसारी।

अर्थ – कबीरदास जी कहते हैं कि अज्ञान की नींद में सोए क्यों रहते हो? ज्ञान के प्रकाश को हासिल कर प्रभु का नाम लो। सजग होकर प्रभु का ध्यान करो। वह दिन दूर नहीं जब तुम्हें गहन निंद्रा में सो ही जाना है, जब तक जाग सकते ही जागते क्यों नहीं? प्रभु का नाम स्मरण क्यों नहीं करते?

Kabir Ke Dohe in Hindi | कबीर के दोहे

तन को जोगी सब करें, मन को बिरला कोई,
सब सिद्धि सहजे पाइए, जे मन जोगी होई।

अर्थ – कबीरदास जी कहते हैं कि शरीर में भगवे वस्त्र धारण करना तो सरल है, किन्तु मन को योगी बनाना कुछ ही व्यक्तियों का काम है। अगर मन योगी हो जाए तो सारी सिद्धियाँ सहज ही प्राप्त हो जाती हैं।

कबीर लहरि समंद की, मोती बिखरे आई,
बगुला भेद न जानई, हंसा चुनी-चुनी खायी।

अर्थ – कबीरदास जी कहते हैं कि समुद्र की लहरों में मोती आकर बिखर गए। बगुला उनका भेद नहीं जानता, परंतु हंस उन्हें चुन-चुन कर खा रहा है। इसका अर्थ यह है कि किसी भी वस्तु का महत्व सिर्फ उसका जानकार ही जान पाता है।

जो उग्या सो अन्तबै, फुल्या सो कुमलाहीं,
जो चिनिया सो ढही पड़े, जो आया सो जाहीं।

अर्थ – कबीरदास जी कहते हैं कि इस संसार का नियम यही है कि जो उदय हुआ है, वह अस्त भी होगा। जो विकसित हुआ है वह मुरझा जाएगा। जो चिना गया है वह गिर पड़ेगा और जो आया है वह पक्का जाएगा।

कबीर संगी साधू का, दल आया भरपूर,
इंद्रिन को तब बांधीया, या तन किया धर।

अर्थ – कबीरदास जी कहते हैं कि संतो के सधी विवेक-वैराग्य, दया क्षमा, समता आदि का दल जब परिपूर्ण रूप से ह्रदय में आया। तब संतों ने इंद्रियों को रोककर शरीर की व्याधियों को धूल कर दिया। अथार्त तन-मन को वश में कर लिया।

गारी ही से उपजै, कलह कष्ट और मीच,
हरि चले सो संत है, लागि मरै सो नीच।

अर्थ – कबीरदास जी कहते हैं कि गाली से झगड़ा संताप एवं मरने मरने तक की बात आ जाती है। इससे अपनी हार मानकर जो विरक्त हो चलता है, वह संत है, और जो व्यक्ति मरता है, वह नीच है।

झिरमिर-झिरमिर बरसिया, पाहन ऊपर मेंह,
माटी गलि सैजल भई, पांहन बोही तेह।

अर्थ – कबीरदास जी कहते हैं कि बदल पत्थर के ऊपर झिरमिर करके बरसने लगे। इससे मिट्टी तो भीग कर सजा हो गई किन्तु पत्थर वैसा का वैसा बना रहा।

मान, महातम, प्रेम रस, गरवा तण गुण नेह,
ए सबही अहला गया, जबहीं कह्या कुछ देह।

अर्थ – कबीरदास जी कहते हैं कि मान, महत्व, प्रेम रस, गौरव गुण और स्नेह-सब बाढ़ में बह जाते हैं जब किसी मनुष्य से कुछ देने के लिए कहा जाता है।

Kabir Das Lines in Hindi | कबीर के धार्मिक विचार

 कबीरा खड़ा बाजार में, सबकी मांगे खैर,
न काहू से दोस्ती, न काहू से बैर।

अर्थ – कबीरदास जी कहते हैं कि सबके बारे में भला सोचो। न किसी से ज्यादा दोस्ती रखो और न ही किसी से दुश्मनी रखो।

जैसा भोजन खाइए, तैसा ही मन होय,
जैसा पानी पीजिए, तैसी वाणी होय।

अर्थ – कबीरदास जी कहते हैं कि हम जैसा भोजन करते है वैसा ही हमारा मन हो जाता है और हम जैसा पानी पीते है वैसी ही हमारी वाणी हो जाती है।

जग में बैरी कोई नहीं, जो मन शीतल होय,
यह आपा तो डाल दे, दया करे सब कोय।

अर्थ – कबीरदास जी कहते हैं कि अगर हमारा मन शीतल है तो इस संसार में हमारा कोई बैरी नहीं हो सकता। अगर अहंकार छोड़ दें तो हर कोई हम पर दया करने को तैयार हो जाता है।

बड़ा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर,
पंथी को छाया नहीं फल लागे अति दूर।

अर्थ – कबीरदास जी कहते हैं कि सिर्फ बड़े होने से कुछ नहीं होता। उदाहरण के लिए खजूर का पेड़, जो इतना बड़ा होता है पर न तो किसी यात्री को धुप के समय छाया दे सकता है, न ही उसके फल कोई आसानी से तोड़ के अपनी भूख मिटा सकता है।

पत्थर पूजे हरि मिले, तो मैं पूजू पहाड़,
घर की चाकी कोई न पूजे, जाको पीस खाए संसार।

अर्थ – कबीरदास जी कहते हैं कि अगर पत्थर की मूर्ति की पूजा करने से भगवान मिल जाते तो मैं पहाड़ की पूजा कर लेता हूँ। उसकी जगह कोई घर की चक्की की पूजा कोई नहीं करता, जिसमें अन्न पीसकर लोग अपना पेट भरते हैं।

FAQs

कबीर के सर्वश्रेष्ठ दोहे?

देह खेह होय जाएगी, कौन कहेगा देह,
निश्चय कर उपकार ही, जीवन का फन येह।

कबीर दास जी के अनमोल दोहे?

दोस पराए देखि करि, चला हसंत हसंत,
अपने याद न आवई, जिनका आदि न अंत।

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