Tulsidas Ka Jivan Parichay In Hindi
Tulsidas Ka Jivan Parichay In Hindi: दोस्तों आज हम आपके लिए तुलसीदास के जीवन परिचय को लेकर आये है। तुलसीदास को हम सभी एक कवि और रामभक्त के रूप में जानते है। इस लेख में हमनें तुलसीदास के जीवन से जुड़ी सभी महत्वपूर्ण बातों और घटनाओं का उल्लेख किया है। आपको यह जानना जरुरी है क्योंकि वह भारत के एक बहुत बड़े हिन्दू कवि थे। जिन्होंने बहुत से ग्रंथो की रचना की।
रामचरित मानस के बारे में तो आप जानते ही होंगे जिसमें श्री राम के जीवन के बारे में बताया गया है। उसकी रचना भी तुलसीदास ने ही की थी। इसके अलावा उन्होंने बहुत से अद्भुत ग्रन्थ और पत्रिका की रचना की जिसके बारे में हम आगे जानेंगे।
Tulsidas का जन्म कब हुआ था ?
तुलसीदास का जन्म 1511 ईस्वी में उत्तरप्रदेश के बाँदा जिले के राजपुर गांव में हुआ था। अभी यह जगह चित्रकूट में पड़ती है। इनका जन्म एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। सामान्यतः सभी अपनी माँ की कोख में 9 महीने रहते है। लेकिन तुलसीदास अपनी माँ की कोख़ में 12 महीने रहे। तुलसीदास के पिता का नाम आत्माराम दुबे और माँ का नाम हुलसी था।
तुलसीदास के जन्म के अगले ही दिन इनकी माता की मृत्यु हो गयी। जिसके कारण इनके पिता ने इनको अपशगुनी समझा और और चुनिया नाम की एक महिला को दे दिया। वह महिला भी जब तुलसीदास साढ़े पांच वर्ष के हुए तो गुजर गयी।
तुलसी का बचपन का नाम क्या था ?
तुलसीदास ने जन्म लेते ही सबसे पहले राम शब्द बोला। जिसके कारण इनके पिता ने इनका नाम रामबोला रख दिया। चुनिया नामक महिला के मरने के बाद तुलसीदास का पालन पोषण बाबा नरहरिदास ने किया। नरहरिदास ही तुलसीदास के गुरु भी थे। उन्होंने ही तुलसीदास का नाम रामबोला से तुलसीदास रखा और दीक्षा दी।
तुलसीदास ने बचपन में भिक्षा मांग कर भी अपना गुजारा किया। अपने गुरु के साथ रहते हुए ही इन्होंने विभिन्न साहित्य और भाषाओ का अध्ययन किया।
तुलसीदास की पत्नी का क्या नाम था ?
तुलसीदास ने 29 वर्ष की आयु में विवाह किया। तुलसीदास की पत्नी का नाम रत्नावली था। उनका एक पुत्र हुआ जिसका नाम तारक था। लेकिन तारक अपने जन्म के कुछ वर्षों के बाद ही गुजर गया। तुलसीदास अपनी पत्नी से बहुत प्यार करते थे और अपनी पत्नी के मोह में ही खोये रहते थे। जिसके कारण वह अपने काम भर भी ज्यादा ध्यान नहीं देते थे। एक दिन तुलसीदास की पत्नी ने तुलसीदास से एक प्रसिद्ध दोहा कहा।
“अस्थि चर्म मय देह यह, ता सों ऐसी प्रीति ! नेकु जो होती राम से, तो काहे भव-भीत ?”
जिसका अर्थ है। तुम मुझ पर इतने आसक्त क्यों हो जो हड्डी और माँस का बना हुआ है। अगर तुम यही आसक्ति और मोह श्री राम में लगाते तो तुम्हारा उद्धार हो जाता।
अपनी पत्नी के यह वचन सुनने के बाद उनका जीवन ही बदल गया। उन्होंने घर त्याग कर श्री राम की खोज में निकल पड़े। इसी दौरान उन्होंने बहुत से ग्रंथो की रचना की।
तुलसी के आराध्य देव कौन थे ?
तुलसीदास के आराध्य देव श्री राम थे। वह हमेशा उनकी ही भक्ति में लीन रहते थे। उनकी ही भक्ति में उन्होंने अपना पूरा जीवन लगा दिया।
तुलसीदास को गोस्वामी क्यों कहा जाता है ?
तुलसीदास को उनकी अद्भुत रचनाओं के कारण गोस्वामी और अभिनव बाल्मीकि उपाधि प्रदान की गयी। गोस्वामी का अर्थ होता है ऐसा व्यक्ति जिसने अपनी इन्द्रियों को अपने वश में कर लिया हो। तुलसीदास ने अपनी पत्नी का मोह त्याग कर श्री राम के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया था। इसी कारण तुलसीदास को गोस्वामी तुलसीदास कहा जाता है।
तुलसीदास जी की काव्य भाषा की विशेषता क्या है ?
तुलसीदास की अवधी और ब्रज भाषा पर मजबूत पकड़ थी। जिसके कारण तुलसीदास ने अपनी सभी ग्रंथो की रचनाएँ केवल अवधी और ब्रज भाषा में की। यही उनकी काव्य भाषा की विशेषता भी है।
तुलसी की रचनाओं से क्या संदेश मिलता है ?
तुलसीदास ने अपनी रचनाओं से राम भक्ति का सन्देश दिया है। इसके अलावा उनकी रचनाओं से आपसी प्रेम, मेल जोल, अच्छे विचार और सद्भावना का सन्देश लोगों को मिलता है। तुलसीदास सामाजिक कुरीतियों के सख़्त ख़िलाफ़ थे। उन्होंने अपनी रचनाओं के द्वारा उनको दूर करने का भी सन्देश दिया है।
तुलसीदास के प्रमुख महाकाव्य का नाम क्या है ?
तुलसीदास का सबसे प्रमुख महाकाव्य ‘रामचरितमानस’ है। जिसको दुनिया के सबसे अच्छे काव्य रचना में 46 वा स्थान प्राप्त है। इसके अलावा तुलसीदास ने हनुमान चालीसा, दोहावली पार्वती मंगल, कवितावली, जानकीमंगल, गीतावली, वैराग्य संदीपनी, रामललानहछू, बरवै रामायण, कृष्ण गीतावली, विनयपत्रिका आदि की रचना की।
यह कहा जाता है की तुलसीदास को श्री हनुमान जी के दर्शन हुए थे। उन्होंने ही तुलसीदास को रामचरितमानस लिखने में उनकी मदद करी। जब तुलसीदास ने हनुमान जी को श्री राम से मिलने की इच्छा जताई तो उन्होंने तुलसीदास को चित्रकूट जाने की सलाह दी।
चित्रकूट जाकर तुलसीदास की श्री राम से मिलने की इच्छा पूरी हो गयी और श्री राम ने भी तुलसीदास को दर्शन दिए। तुलसीदास ने हनुमान जी की भी बहुत भक्ति की और हनुमान मंदिर का निर्माण करवाया।
तुलसीदास की मृत्यु कहाँ हुई ?
तुलसीदास ने अपने जीवन में बहुत से तीर्थ स्थलों की यात्रा की। उन्होंने अपने जीवन का बहुत सा समय चित्रकूट, काशी , और अयोध्या में बिताया। तुलसीदास ने अपने जीवन का अंतिम समय वाराणसी में बिताया। तुलसीदास की मृत्यु 1623 ईस्वी में वाराणसी के अस्सी घाट में हुई। उन्होंने राम नाम का उच्चारण करते हुए अपने प्राण त्याग दिए।
Tulsidas Jayanti 2024
तुलसीदास की जयंती हर वर्ष श्रावण मास की सप्तमी तिथि को मनाई जाती है। इस वर्ष 2024 में यह तिथि 11 Aug 2024 को रविवार के दिन है।
हम उम्मीद करते है की आपको गोस्वामी तुलसीदास के जीवन परिचय हिंदी में से जुडी हुई सभी बातों के बारे में पता चल गया होगा। यदि आप तुलसीदास के बारे में अभी भी कोई सवाल हमसे पूछना चाहते है या अपने सुझाव हमें देना चाहते है तो आप हमें नीचे कमेंट कर सकते है।
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