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October 9, 2019
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Planets in astrology | Sign in astrology | ज्योतिष में राशि

By admin Astrology gyan  0 Comments
Planets in astrology  Sign in astrology  ज्योतिष में राशि
Planets in astrology Sign in astrology ज्योतिष में राशि

Planets in astrology | Sign in astrology | ज्योतिष में राशि : आपने इसके पहले भाग में ज्योतिष के कुछ बहुत ही जरुरी बेसिक बातों को जाना था। इस भाग में हम आपको इससे आगे बताएँगे। जिससे आपका ज्योतिष का ज्ञान और भी बढ़ जाये।

ग्रह और उनकी प्रकृति:

जिस तरह आप जान चुके होंगे की कुल 9 ग्रह होते है राहु और केतु को मिलाकर। अब इन ग्रहों की प्रकृति को समझते है की ये किस प्रकार का नेचर रखते है जब ये किसी भाव में बैठते है तो उसका क्या परिणाम हो सकता है।

सूर्य –

यह एक क्रूर ग्रह और विच्छेदात्मक ग्रह की श्रेणी में आता है। सूर्य सरकार , बॉस और पिता को प्रतीत करता है। सूर्य एक ऊंची पोजीशन , प्रतिनिधित्व और सरकारी काम काज को दर्शाता है। सूर्य यदि अच्छा हो तो सरकार से पिता से अच्छे सम्बन्ध दर्शाता है। इसके साथ किसी ऊंची सरकारी नौकरी को भी देता है। यदि सूर्य ख़राब या नीच का हो तो सरकार और पिता से मतभेद। सरकारी काम काज में बाधा आना आदि होते है।

चंद्र –

यह एक सौम्य ग्रह है। यह स्त्री को दर्शाता है। इसके साथ यह माता को और मन को दर्शाता है। यह जल्द बदलाव का प्रतीक है। इससे पानी और जलीय चीज़े , समुंदी यात्राय , विदेश भर्मण और आयात निर्यात भी देखा जाता है। यदि आपका चंद्र मजबूत हो तो मजबूत मानसिकता को दर्शाता है। यदि आपका चंद्र बहुत कमजोर हो तो यह दिमाग से सम्बंधित बीमारी, तनाव और पागलपन को भी दर्शाता है।

मंगल –

यह एक आक्रामक ग्रह की श्रेणी में आता है। इससे बड़े भाइयों को देखा जाता है। इससे जुड़े लोग सेना, पुलिस , खिलाड़ी और बॉक्सर जैसे कार्यों में नज़र आते है। यह लड़ाई झगड़े के कार्यो से भी सम्बन्ध रखता है। इससे शरीर में ब्लड को भी देखते है।

बुध –

यह ग्रह जिस ग्रह के साथ होता है वैसा ही परिणाम देता है। यह एक युवा ग्रह है। जिससे व्यापार से सम्बंधित कार्य और लिखा पढ़ी के कार्य देखे जाते है। इससे प्रभावित लोग व्यापारी या क्लर्क के क्षेत्र में होते है। इससे वाक कुशलता को भी देखा जाता है। इससे बहन और बुआ को देखा जाता है। 

गुरु –

यह देवताओं का गुरु है। इससे पढाई से सम्बंधित कार्य अध्यापन के कार्यों को देखा जाता है। इससे बड़े बुजुर्गों को देखा जाता है। यह धन , शुभ कार्य और पुत्र का भी कारक है। महिलाओं की कुंडली में इससे पति को देखते है। यह बहुत ज्ञान और धर्म से सम्बंधित कार्यों को भी दर्शाता है।

शुक्र –

यह स्त्री कारक ग्रह है। इससे पुरुषों की कुंडली में पत्नी को देखते है। यह भोग विलास, महँगी गाड़ियों और अमीरी को दर्शाता है। इससे महिलाओं से सम्बंधित कार्य और सभी स्त्री को भी देखा जाता है।

शनि –

यह एक क्रूर ग्रह है इसकी स्थिति और दृष्टि अच्छी नहीं समझी जाती। इससे दुःख , परेशानी, गरीबी, अधिनष्ठ नौकरी और दुबलापन को देखा जाता है। यदि शनि कुंडली में अच्छा हो तो जज और तेल का बड़ा व्यापारी बनाता है यदि यह ख़राब हो तो भिखारी बना देता है। यह एक न्यायप्रिय और धार्मिक ग्रह भी है। घर बार त्याग कर संन्यास ले लेना भी इससे ही देखते है।

राहु –

यह भी एक क्रूर ग्रह की श्रेणी में आता है। यह एक भ्रामक ग्रह है जो लोगों में भ्रम को पैदा कर देता है। इससे प्रभावित लोगों को बहुत जल्दी और सब कुछ चाहिए होता है। यह कुछ भी बड़ा करता है। यह नियम को कानून को नहीं मानता। यह जिस भी घर में बैठता है कुछ अलग ही करता है। इसको सब सांसारिक सुख चाहिए होते है।

केतु –

यह भी एक क्रूर और अलगाव वादी ग्रह होता है। यह जहाँ भी बैठा होता है वहाँ पर अलगाव की स्थिति पैदा कर देता है। यह मोक्ष दिलाने वाला ग्रह है। यह धार्मिक कार्यो के लिए भी जाना जाता है। यह जो भी करता है अचानक करता है। यह मंगल ग्रह जैसे परिणाम भी देता है। इसको दुनियादारी में कोई रूचि नहीं होती।

ग्रहों की दृष्टि:

हर ग्रह की एक दृष्टि होती है जिससे यह दूसरे घर को देखता है। सामानयतः हर ग्रह की 7 वी दृष्टि होती है लेकिन कुछ ग्रहों को कुछ ख़ास दृष्टि प्राप्त है जिससे यह कुछ अन्य घर को भी देख पाते है। सूर्य, चंद्र, शुक्र और बुध की केवल सातवीं दृष्टि है जिससे यह जहाँ भी बैठे होते है अपने से सातवें घर में देखते है।

मंगल की सातवीं दृष्टि के अलावा चौथी और आठवीं दृष्टि भी होती है। गुरु की पाँचवी , सातवीं और नौवीं दृष्टि होती है। शनि अपने स्थान से तीसरी, सातवीं और दसवीं दृष्टि से देखता है। राहु और केतु भी गुरु की तरह अपने स्थान से पांचवी , सातवीं और नौवीं दृष्टि से देखते है।

सूर्य की दृष्टि क्रूर और घमंड वाली होती है। चंद्र की दृष्टि सौम्य अच्छी होती है। मंगल की दृष्टि आक्रामक और लड़ाई झगड़े वाली होती है। बुध की दृष्टि बुद्धि वाली और चंचल किस्म की होती है। शुक्र की दृष्टि मंत्रमुग्ध और विलासिता को दर्शाती है।

गुरु की दृष्टि बहुत ज्ञानवान और सबसे अच्छी मानी जाती है यह बहुत सी बुराइयों को खत्म कर देती है। राहु को केतु की दृष्टि क्रूर और अलगाववादी मानी जाती है। यह परेशानी का कारण भी बनती है। 

राशि कैसे देखते है:

आपके जन्म के समय की कुंडली में चंद्र जिस राशि में बैठा होता है वह आपकी राशि होती है। जिस प्रकार जन्म के समय चंद्र आपकी जन्म कुंडली में 10 नम्बर में बैठा हुआ था तो आपकी राशि मकर है। राशि सामानयतः नाम के लिए ज़्यादा प्रयोग की जाती है जब बच्चे का जन्म होता है तो उसके हिसाब से ही उसकी राशि को देखकर उसका नामकरण किया जाता है।

कुंडली में राशि का महत्त्व:

कुंडली में राशि बहुत महत्वपूर्ण स्थान रखती है जिस प्रकार आपका लग्न जरुरी होता है उसी तरह राशि कुंडली का भी महत्त्व होता है। चंद्र जिस राशि में बैठा होता है तो इससे जातक की मानसिकता और उसकी रूचि को देखा जाता है की वह किस प्रकार की सोच रखता है।

गोचर जब भी देखा जाता है तो यह चंद्र कुंडली की राशि से ही देखा जाता है क्योकि इसका सीधा प्रभाव हमारे मन से जुड़ा होता है। इसके अलावा साढ़े साती का विचार भी चंद्र कुंडली या राशि से ही होता है।

जब भी गोचर का शनि आपके जन्म कुंडली के चन्द्रमा से एक घर पहले होता है तब साढ़े साती शुरू हो जाता है फिर यह आपके जन्म कुंडली के चंद्र से गुजरता हुआ अगली राशि में जाता है तब तक साढ़े साती रहती है। इस प्रकार राशि लग्न के सामान ही कुंडली में महत्त्व रखता है।

गोचर:

गोचर से अभिप्राय जब आप जन्म लेते है तब आकाश में ग्रहों की जो स्थिति होती है वह आपकी कुंडली बन जाती है लेकिन उसके बाद ग्रह लगातार हमेशा अपना स्थान परिवर्तन करते रहते है।

जन्म कुंडली के ग्रहों की स्थिति की अपेक्षा में अभी के ग्रहों की जो स्थिति होती है वही गोचर कहलाती है। किसी भी शुभ कार्य को करने से पहले गोचर को जरूर देखा जाता है।

यदि हमारे जन्म की कुंडली में कोई ग्रह अच्छी अवस्था में बैठा होता है तो उसका गोचर भी ज्यादातर अच्छा ही फल देता है लेकिन यदि कोई ग्रह जन्म कुंडली में ही ख़राब बैठा है तो इसका गोचर भी ज्यादातर ख़राब परिणाम ही देगा।

किस लग्न के लिए कौन कारक और अकारक ग्रह

मेष लग्न में कारक और अकारक ग्रह:

मेष लग्न के मालिक मंगल देव होते है इस लग्न में मंगल , सूर्य और गुरु कारक ग्रह होते है जबकि शुक्र , बुध अकारक ग्रह होते है और शनि दसवें और ग्यारवें घर का मालिक होने के कारण सम की स्थिति में होते है।

वृष लग्न में कारक और अकारक ग्रह:

वृष लग्न का मालिक शुक्र देव होते है इस लग्न में शुक्र, बुध और शनि देव कारक ग्रह बनते है जबकि गुरु और मंगल अकारक ग्रह होते है। सूर्य यहाँ सम ग्रह की श्रेणी में आते है।

मिथुन लग्न में कारक और अकारक ग्रह:

मिथुन लग्न का मालिक बुध देव होते है। जो की पहले और चौथे घर के मालिक होते है। इस कुंडली में बुध, शुक्र और शनि कारक ग्रह होते है जबकि मंगल और गुरु अकारक ग्रह होते है। इसमें सूर्य और चंद्र सम ग्रह की श्रेणी में आते है।

कर्क लग्न में कारक और अकारक ग्रह:

इस लग्न में चंद्र देव मालिक होते है। इसमें चंद्र , मंगल और गुरु देव कारक ग्रह बनते है जबकि शनि और बुध अकारक ग्रह बनते है। इसमें शुक्र और सूर्य सम की स्थिति में रहते है।

सिंह लग्न में कारक और अकारक ग्रह:

सिंह लग्न के मालिक सूर्य देव होते है इस लग्न में सूर्य, गुरु और मंगल ग्रह कारक होते है। इसमें शनि , शुक्र, चंद्र अकारक ग्रह होते है जबकि बुध सम की स्थिति में होता है।

कन्या लग्न में कारक और अकारक ग्रह:

इस लग्न में बुध मालिक होते है। वह इस लग्न में पहले और दसवें घर के मालिक होते है। इस लग्न में बुध, शनि और शुक्र योगकारक ग्रह बनते है। इसमें मंगल, सूर्य और गुरु अकारक ग्रह होते है। जबकि चंद्र सम ग्रह की श्रेणी में आता है।

तुला लग्न में कारक और अकारक ग्रह:

तुला लग्न में शुक्र देव जो राक्षसो क गुरु होते है मालिक बनते है। तुला लग्न में शुक्र, शनि और बुध कारक ग्रह बनते है। इसमें गुरु, मंगल और सूर्य अकारक ग्रह बनते है और चंद्र सम ग्रह की श्रेणी में आता है।

वृश्चिक लग्न में कारक और अकारक ग्रह:

इस लग्न में मंगल देव मालिक बनते है जो इस कुन्डली में पहले और छठे घर के मालिक होते है। इस लग्न में मंगल, गुरु और चंद्र योगकारक ग्रह बनते है। इस लग्न में बुध, शुक्र अकारक ग्रह बनते है जबकि शनि और सूर्य सम की स्थिति में होते है।

धनु लग्न में कारक और अकारक ग्रह:

धनु लग्न के मालिक होते है गुरु देव जो इस कुन्डली में पहले और चौथे घर के मालिक होते है। इस लग्न में गुरु, मंगल और सूर्य योगकारक ग्रह बनते है। इसमें शुक्र , चंद्र और बुध अकारक ग्रह होते है जबकि शनि सम की स्थिति में होते है।

यह भी पढ़े: Learn about astrology | ज्योतिष विज्ञान के बारे में सीखें

मकर लग्न में कारक और अकारक ग्रह:

इस लग्न के मालिक होते है शनि देव जो इस कुंडली में पहले और दूसरे घर के मालिक होते है। इसमें शनि, शुक्र और बुध कारक ग्रह होते है। जबकि सूर्य , गुरु और चंद्र अकारक ग्रह होते है।

कुम्भ लग्न में कारक और अकारक ग्रह:

इस लग्न में भी शनि मालिक होते है जो पहले और बारहवें घर के मालिक होते है। इसमें शनि, बुध और शुक्र कारक और सूर्य, चंद्र, गुरु अकारक ग्रह होते है। मंगल सम की स्थिति में होते है।

मीन लग्न में कारक और अकारक ग्रह:

इस लग्न में गुरु देव मालिक होते है। इसमें गुरु पहले और दशवें घर के मालिक होते है। इसमें गुरु, चंद्र और मंगल कारक ग्रह बनते है। इसमें शुक्र, शनि और सूर्य अकारक ग्रह बनते है।

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